आकाश़ + अग्ऩि + वायु़ + जल़ + पृथ्वी = निर्माण क्रिया
देह या शरीर-वायु-जल-अग्नि-पृथ्वी-आकाश = ध्वंस प्रक्रिया
आदि काल से हिंदू धर्म ग्रंथों में चुबंकीय प्रवाहों, दिशाओं, वायु प्रभाव, गुरुत्वाकर्षण के नियमों को ध्यान में रखते हुए वास्तु शास्त्र की रचना की गयी तथा यह बताया गया कि इन नियमों के पालन से मनुष्य के जीवन में सुख-शांति आती है और धन-धान्य में भी वृद्धि होती है।
मानव शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है, क्योकि मानव शरीर पंच तत्वों से निर्मित होता है और अंततः पंच तत्वों में ही विलीन हो जाता है।
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